Monday, May 23, 2016

मेरी सेवानिवृत्ति


एक दिन मैं भी
ऐसे ही सेवानिवृत्त हो
कर
जाउंगा कार्यालय से

लोग अनमने मन से
मुझे भी कुछ हार पहनाएंगे
थोड़े मेरी प्रशंसा में
वे शब्द कहेंगे
जिनमें न रस होगा
न ताज़गी
और फिर खाने-पीने
का दौर शुरु हो जाएगा

तब मैं घर लौट आऊंगा
और लोग धीरे-धीरे
मुझे भूल जाएंगें
कार्यालय वैसे ही चलता
रहेगा
जैसे आज चलता है
बस मैं न रहूंगा
न मेरे हस्ताक्षर होंगे
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होगा एक विराट शून्य
जिसमें धीरे-धीरे
सब समा जाएगा
और अस्तित्व अपनी
एक महायात्रा पूरी
कर चुका होगा

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