Tuesday, June 15, 2021

शव बाहिनी गंगा

  एक साथ सब मुर्दे बोले ‘सब कुछ चंगा-चंगा’ 

साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा ख़त्म हुए शमशान तुम्हारे, ख़त्म काष्ठ की बोरीथके हमारे कंधे सारे, आँखें रह गई कोरी  

दर-दर जाकर यमदूत खेले मौत का नाच बेढंगा साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा  

नित लगातार जलती चिताएँ राहत माँगे पल भर नित 

लगातार टूटे चूड़ियाँ कुटती छाति घर घर  देख

 लपटों को फ़िडल बजाते वाह रे ‘बिल्ला-रंगा’ साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा 

 साहेब तुम्हारे दिव्य वस्त्र, दैदीप्य तुम्हारी ज्योति 

काश असलियत लोग समझते, हो तुम पत्थर, ना मोती  

हो हिम्मत तो आके बोलो ‘मेरा साहेब नंगा’ साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा  

=रचनाकार-पारुल खक्खर 

(सत्ता हल्लाउने गुजराती कविताको यो हिन्दी अनुवाद कपि पेष्ट गरिएको हो । नजलाइएका थुप्रै लाशहरु गंगामा बगाइएको देखेर यो कालजयि काब्य पंक्ति कोरिएको थियो ।  )

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